१.मनुष्य को मनुष्य-मात्र समझने का व्यापक दृष्टिकोण होना।
२.अपनी उम्र के किसी विशेष दौर से लगाव रख कर उम्रभर उसी आयु के मित्र ढूंढना।
३.अपने पिता/माता/ दादी/दादा/अध्यापक आदि को अवचेतन में याद करके उनकी आयु के मित्र तलाश करना।
४. अवचेतन में बसे चेहरे,चाहे किसी भी आयु के हों, अपनाने की प्रवृति होना।
५.अपने से बड़ों के माध्यम से सुरक्षा या संरक्षा की तलाश करना।
६. अपने से छोटों के माध्यम से अपनी संरक्षा दे पाने की क्षमता का विदोहन करना।
७. अपने समान आयु के लोगों से प्रतिस्पर्धा महसूस करके उनसे बचने की प्रवृति होना।
८. अपने मानसिक और शारीरिक स्तर के बीच असंतुलन का होना।
९. अपने से कम उम्र के लोगों के लिए आकर्षण का अनुभव होना।
१०. स्वाधीन निर्णय-क्षमता के परीक्षण से अपना जोखिम-स्तर पोषित करना।
२.अपनी उम्र के किसी विशेष दौर से लगाव रख कर उम्रभर उसी आयु के मित्र ढूंढना।
३.अपने पिता/माता/ दादी/दादा/अध्यापक आदि को अवचेतन में याद करके उनकी आयु के मित्र तलाश करना।
४. अवचेतन में बसे चेहरे,चाहे किसी भी आयु के हों, अपनाने की प्रवृति होना।
५.अपने से बड़ों के माध्यम से सुरक्षा या संरक्षा की तलाश करना।
६. अपने से छोटों के माध्यम से अपनी संरक्षा दे पाने की क्षमता का विदोहन करना।
७. अपने समान आयु के लोगों से प्रतिस्पर्धा महसूस करके उनसे बचने की प्रवृति होना।
८. अपने मानसिक और शारीरिक स्तर के बीच असंतुलन का होना।
९. अपने से कम उम्र के लोगों के लिए आकर्षण का अनुभव होना।
१०. स्वाधीन निर्णय-क्षमता के परीक्षण से अपना जोखिम-स्तर पोषित करना।