Monday, February 15, 2016

10 प्रमुख कारण - लगातार न लिख पाने के

१. कभी ऐसा जीवन मिला कि इस बात पर तो लिखा जाए, कभी ऐसा, कि छोड़ो क्या लिखना !
२. कभी ऐसे महानगरों में रहना पड़ा कि खाने को समय न मिले, कभी ऐसे गाँव में, कि लोग एक मिनट के लिए भी अकेला न छोड़ें।
३. कुछ ऐसे साहित्यकार मिले, जिन्हें देख कर लगा कि इनका दर्द अधूरा है, चलो पूरा करें। कुछ ऐसे मिले, कि जिन्हें देख कर लगे- डकार के बाद भी क्या खाना?
४. कुछ ऐसे दफ्तर मिले, कि प्रकाशक मेज के सामने आकर पूछें- अब क्या लिख रहे हैं? कुछ ऐसे पतों पर भी रहना पड़ा कि वहां से किसी प्रकाशक को चिट्ठी लिखो तो वो जवाब ही न दे।
५. उम्र के उतार- चढ़ाव के साथ कभी घर में रोज़ रात को कहानी सुनाने की ज़िद करने वाले बच्चे, तो कभी उनकी पुराने खिलौनों से अटी बंद अलमारियां।
६. गिरगिट सा रंग बदलता वक़्त- कभी किसी पत्रिका में संपादक के नाम छपी अपनी चिट्ठी बार-बार पढ़ने के बाद संपादक का नाम खोजने को जी चाहे, तो कभी उसी पत्रिका में हर बार मुखपृष्ठ पर संपादक जी की खुद की छवि देख कर पैन की स्याही ही सूख जाये।
७. कभी देश में ऐसी सत्ता कि रोज़ क्रिया-प्रतिक्रिया के लिए कलम उठ जाये, कभी ऐसी कि छोड़ो -भैंस के आगे बीन क्या बजाना ?
८. वैश्वीकरण की तेज़ आंधी में मान्यताओं और मूल्यों का रोज़ बदलना।
९. लिखने वालों के समाज-स्वीकार में तिरछी नज़र आना।
१०. तकनीक की बौछारों में अपना ग्रीनरूम सार्वजनिक हो जाना।             
   
      

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